राजस्थान की राजधानी जयपुर की रोचक जानकारी

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नमस्कार दोस्तो 

        आज के ब्लॉग मे हम बात करेंगे राजस्थान की  खूबसूरत जगहो  के बारे मे 

मे आपको बता देना चाहता हूँ हम बात करेंगे जयपुर  की जो राजस्थान की राजधानी है  ओर इसे हम पिंक सिटी के नामे से भी जानते है तो चलिये सुरू करते है 

1.जयपुर की स्थापना आमेर के महाराजा  महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने की थी| जयपुर की स्थापना 18 नवम्बर 1727 को की थी  सबसे पहले जयपुर को स्टैनली रीड ने पिंक सिटी बोला था 
2.  युनेस्को  द्वारा जुलाई 2019 में जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज  का दर्जा दिया गया है
3. यह शहर तीन ओर से अरावली घिरा हुआ है 
4.जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है
5.जयपुर शहर की पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है
6.शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं

*जयपुर का ईतिहास 
                              सत्रहवीं शताब्दी में जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत  में अराजकता सिर  उठाने लगी, ऐसे दौर में राजपूतना  की आमेर रियासत, एक बडी ताकत के रूप में उभरी। जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह  को तब मीलों के दायरे में फ़ैली अपनी रियासत  संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिये आमेर  छोटा लगने लगा और इस तरह से इस नई राजधानी  के रूप में जयपुर की कल्पना की गई। इस शहर की नीव पहले पहल कहां रखी गई, इसके बारे में मतभेद हैं, किंतु कुछ इतिहासकारों के अनुसार तलकटोरा के निकट स्थित शिकार की होदी से इस शहर के निर्माण की शुरुआत हुई। कुछ इसे ब्रह्मपुरी और कुछ आमेर के पास एक स्थान 'यज्ञयूप' स्थल से मानते हैं।
 पर ये निर्विवाद है संबसे पहले चन्द्रमहल बना और फिर बाज़ार और साथ में तीन चौपड़ें |

सवाई जयसिंह ने यह शहर बसाने से पहले इसकी सुरक्षा की भी काफी चिंता की थी और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही सात मजबूत दरवाजों के साथ किलाबंदी की गई थी। 

जयसिंह ने हालाँकि मराठों के हमलों की चिंता से अपनी राजधानी की सुरक्षा के लिए चारदीवारी बनवाई थी, लेकिन उन्हें शायद मौजूदा समय की सुरक्षा समस्याओं का भान नहीं था। इतिहास की पुस्तकों में जयपुर के इतिहास के अनुसार यह देश का पहला पूरी योजना से बनाया गया शहर था और स्थापना के समय राजा जयसिंह ने अपनी राजधानी आमेर में बढ़ती आबादी और पानी की समस्या को ध्यान में रखकर ही इसका विकास किया था।

 नगर के निर्माण का काम १७२७ में शुरू हुआ और प्रमुख स्थानों के बनने में करीब चार साल लगे। यह शहर नौ खंडों में विभाजित किया गया था, जिसमें दो खंडों में राजकीय इमारतें और राजमहलों को बसाया गया था।

 प्राचीन भारतीय शिल्पशास्त्र के आधार पर निर्मित इस नगर के प्रमुख वास्तुविद थे एक बंगाली ब्राह्मण विध्यधर (चक्रवर्ती), जो आमेर दरबार की 'कचहरी-मुस्तफी' में आरम्भ में महज़ एक नायब-दरोगा (लेखा-लिपिक) थे, पर उनकी वास्तुकला में गहरी दिलचस्पी और असाधारण योग्यता से प्रभावित हो कर महाराजा ने उन्हें नयी राजधानी के लिए नए नगर की योजना बनाने का निर्देश दिया।

यह शहर प्रारंभ से ही 'गुलाबी' नगर नहीं था बल्कि अन्य सामान्य नगरों की ही तरह था, लेकिन 1876 में जब वेल्स के राजकुमार आए तो महाराजा रामसिंह (द्वितीय) के आदेश से पूरे शहर को गुलाबी रंग से जादुई आकर्षण प्रदान करने की कोशिश की गई थी। उसी के बाद से यह शहर 'गुलाबी नगरी' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। 

सुंदर भवनों के आकर्षक स्थापत्य वाले, दो सौ वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्रफल में फैले जयपुर में जलमहल, जंतर-मंतर, आमेर महल, नाहरगढ़ का किला, हवामहल और आमेर का किला राजपूतों के वास्तुशिल्प के बेजोड़ नमूने हैं।

स्थापत्य

नियोजित तरीके से बसाये गये इस जयपुर में महाराजा के महल, औहदेदारों की हवेली और बाग बगीचे, ही नहीं बल्कि आम नागरिकों के आवास और राजमार्ग बनाये गये। गलियों का और सडकों का निर्माण वास्तु के अनुसार और ज्यामितीय तरीके से किया गया,नगर को सुरक्षित रखने के लिये, इस नगर के चारों ओर एक परकोटा बनवाया गया।

 पश्चिमी पहाडी पर नाहरगढ का किला बनवाया गया। पुराने दुर्ग जयगढ़  में हथियार बनाने का कारख़ाना  बनवाया गया, जिसे देख कर आज भी वैज्ञानिक चकित हो जाते हैं, इस कारखाने और अपने शहर जयपुर के निर्माता सवाई जयसिंह  की स्मॄतियों को संजोये विशालकाय जयबाण तोप आज भी सीना ताने इस नगर की सुरक्षा करती महसूस होती है। 

महाराजा  सवाई जयसिंह ने जयपुर को नौ आवासीय खण्डों में बसाया, जिन्हें चोकड़ी  कहा जाता है

, इनमे सबसे बडी चोकड़ी सरहद  में राजमहल ,रमनिवास ,जंतर मंतर ,गोविंद देव जी मंदिर  आदि हैं

, शेष चौकडियों में नागरिक आवास , हवेलियां और कारखाने आदि बनवाये गये। प्रजा को अपना परिवार समझने वाले सवाई जयसिंह  ने सुन्दर शहर को इस तरह से बसाया कि यहां पर नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताओं के साथ अन्य किसी प्रकार की कमी न हो, सुचारु पेयजल  व्यवस्था, बाग-बगीचे, कल कारखाने आदि के साथ वर्षाजल  का संरक्षण और निकासी का प्रबंध भी करवायासवाई जयसिंह  ने लम्बे समय तक जयपुर में राज किया, इस शहर में हस्तकला गीत संगीत शिक्षा  और रोजगार  आदि को उन्होने खूब प्रोत्साहित किया। अलग २ समय में वास्तु  के अनुरुप ईसरलाट,हवामहल रामनिवास  बाग  ओर  विभिन्न कलात्मक मंदिर, शिक्षण संस्थानों आदि का निर्माण करवाया गया।

बाजार- जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौन्दर्य को को देखने के लिये कुछ खास नजर चाहिये, बाजारों से गुजरते हुए, जयपुर की बनावट की कल्पना को आत्मसात कर इसे निहारें तो पल भर में इसका सौन्दर्य आंखों के सामने प्रकट होने लगता है। लम्बी चौडी और ऊंची प्राचीर  तीन ओर फ़ैली पर्वतमाला  सीधे सपाट राजमार्ग गलियां चोराहे चोपड़  भव्य राजप्रसाद मंदिर  और हवेली , बाग बगीचे,जलासय  और गुलाबी आभा से सजा यह शहर इन्द्रपूरी का आभास देने लगता है,जलाशय  तो अब नहीं रहे, किन्तु कल्पना की जा सकती है, कि अब से कुछ दशक पहले ही जयपुर परकोटे  में ही सिमटा हुआ था, तब इसका भव्य एवं कलात्मक रूप हर किसी को मन्त्र-मुग्ध कर देता होगा। आज भी जयपुर यहां आने वाले सैलानियों को बरसों बरस सहेज कर रखने वाले रोमांचकारी अनुभव देता है।

जयपुर का बदलाव

जयपुर की रंगत अब बदल रही है। हाल ही में जयपुर को विश्व के दस सबसे खूबसूरत शहरों में शामिल किया गया है। महानगर बनने की ओर अग्रसर जयपुर में स्वतन्त्रता  के बाद कई महत्वाकांक्षी निर्माण हुए। एशिया  की सबसे बडी आवासीय बस्ती मानसरोवर, राज्य का सबसे बड़ा सवाई मानसिंह चिकित्सालय  , विधानसभा भवन , अमर जवान ज्योति , एम.आई.रोड, सेन्ट्रल पार्क और विश्व के प्रसिद्ध बैंक इसी कड़ी में शामिल हैं। पिछले कुछ सालों से जयपुर में मेट्रो संसक्रती के दर्शन होने लगे हैं। चमचमाती सडकें, बहुमंजिला शापिंग माल, आधुनिकता को छूती आवासीय कालोनियां, आदि महानगरों की होड करती दिखती हैं। पुराने जयपुर और नये जयपुर में नई और पुरानी संस्कॄति के दर्शन जैसे इस शहर के विकास और ईतिहास  दोनों को स्पष्ट करते हैं। जयपुर कितना भी बदले पर इसके व्यंजनों का जायका बदस्तूर कायम है। जयपुर के व्यजन में प्रसिद्ध दाल बाटी चूरमा, केर सांगरिया की सब्जी, मालपुआ इत्यादि है।

दर्शनीय स्थल

शहर में बहुत से पर्यटन आकर्षण हैं, जैसे जंतर मंतर ,हवा महल सिटी पेलेस,गोविंददेव जी का मंदिर ,श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर ,बी एम बिड़ला तारामंडल ,आमेर का किला , जय गढ़दुर्ग     आदि। जयपुर के रौनक भरे बाजारों में दुकानें रंग बिरंगे सामानों से भरी हैं, जिनमें हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, हस्तकला से युक्त वनस्पति रंगों से बने वस्त्र, मीनाकारी आभूषण, पीतल का सजावटी सामान, राजस्थानी चित्रकला के नमूने, नागरा-मोजरी जूतियाँ, ब्लू पॉटरी, हाथीदांत के हस्तशिल्प और सफ़ेद संगमरमर की मूर्तियां आदि शामिल हैं। प्रसिद्ध बाजारों में जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एम.आई. रोड़ के साथ लगे बाजार हैं।

सिटी पैलेस

राजस्थानी व मुगल शैलियों की मिश्रित रचना एक पूर्व शाही निवास जो पुराने शहर के बीचोंबीच है। भूरे संगमरमर के स्तंभों पर टिके नक्काशीदार मेहराब, सोने व रंगीन पत्थरों की फूलों वाली आकृतियों से अलंकृत है। संगमरमर के दो नक्काशीदार हाथी प्रवेश द्वार पर प्रहरी की तरह खड़े है। जिन परिवारों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी राजाओं की सेवा की है। वे लोग गाइड के रूप में कार्य करते है। पैलेस में एक संग्राहलय है जिसमें राजस्थानी पोशाकों व मुगलों तथा राजपूतों के हथियार का बढ़िया संग्रह हैं। इसमें विभिन्न रंगों व आकारों वाली तराशी हुई मूंठ की तलवारें भी हैं, जिनमें से कई मीनाकारी के जड़ाऊ काम व जवाहरातों से अलंकृत है तथा शानदार जड़ी हुई म्यानों से युक्त हैं। महल में एक कलादीर्घा भी हैं जिसमें लघुचित्रों, कालीनों, शाही साजों सामान और अरबी, फारसी, लेटिन व संस्कृत में दुर्लभ खगोल विज्ञान की रचनाओं का उत्कृष्ट संग्रह है जो सवाई जयसिंह द्वितीय ने विस्तृत रूप से खगोल विज्ञान का अध्ययन करने के लिए प्राप्त की थी।

जंतर मंतर वेधशाला 

एक पत्थर की वेधशाला। यह जयसिंह की पाँच वेधशालाओं में से सबसे विशाल है। इसके जटिल यंत्र, इसका विन्यास व आकार वैज्ञानिक ढंग से तैयार किया गया है। यह विश्वप्रसिद्ध वेधशाला जिसे २०१२ में यूनेस्को ने विश्व धरोहरों में शामिल किया है, मध्ययुगीन भारत के खगोलविज्ञान की उपलब्धियों का जीवंत नमूना है! इनमें सबसे प्रभावशाली रामयंत्र है जिसका इस्तेमाल ऊंचाई नापने के लिए (?) किया जाता है।

हवा महल

ईसवी सन् 1799 में निर्मित हवा महल राजपूत स्थापत्य का मुख्य प्रमाण चिन्ह। पुरानी नगरी की मुख्य गलियों के साथ यह पाँच मंजिली इमारत गुलाबी रंग में अर्धअष्टभुजाकार और परिष्कृत छतेदार बलुए पत्थर की खिड़कियों से सुसज्जित है। शाही स्त्रियां शहर का दैनिक जीवन व शहर के जुलूस देख सकें इसी उद्देश्य से इमारत की रचना की गई थी। हवा महल में कुल 953 खिड़कियाँ हैं| इन खिडकियों से जब हवा एक खिड़की से दूसरी खिड़की में होकर गुजरती हैं तो ऐसा महसूस होता है जैसे पंखा चल रहा हैं| आपको हवा महल में खड़े होकर शुद्ध और ताज़ी हवा का पूर्ण एहसास होगा|

गोविनदेवजी का मंदिर 

भगवान कृष्ण का जयपुर का सबसे प्रसिद्ध, बिना शिखर का मंदिर। यह चन्द्रमहल के पूर्व में बने जय-निवास बगीचे के मध्य अहाते में स्थित है। संरक्षक देवता गोविंदजी की मूर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको सवाई जयसिंह द्वितीय ने अपने परिवार के देवता के रूप में यहाँ पुनः स्थापित किया था

सरगासूली 

(ईसरलाट) - त्रिपोलिया बाजार के पश्चिमी किनारे पर उच्च मीनारनुमा इमारत जिसका निर्माण ईसवी सन् 1749 में सवाई ईश्वरी सिंह ने अपनी मराठा विजय के उपलक्ष्य में करवाया था।

रमनिवास बाग 

एक चिड़ियाघर, पौधघर, वनस्पति संग्रहालय से युक्त एक हरा भरा विस्तृत बाग, जहाँ खेल का प्रसिद्ध क्रिकेट मैदान भी है। बाढ़ राहत परियोजना के अंतर्गत ईसवी सन् 1865 में सवाई राम सिंह द्वितीय ने इसे बनवाया था। सर विंस्टन जैकब द्वारा रूपांकित, अल्बर्ट हाल जो भारतीय वास्तुकला शैली का परिष्कृत नमूना है, जिसे बाद में उत्कृष्ट मूर्तियों, चित्रों, सज्जित बर्तनों, प्राकृतिक विज्ञान के नमूनों, इजिप्ट की एक ममी और फारस के प्रख्यात कालीनों से सुसज्जित कर खोला गया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए एक प्रेक्षागृह के साथ रवीन्द्र मंच, एक आधुनिक कलादीर्घा व एक खुला थियेटर भी इसमें बनाया गया हैं।

गुड़िया घर

(समयः 12 बजे से सात बजे तक)- पुलिस स्मारक के पास मूक बधिर विद्यालय के अहाते में विभिन्न देशों की प्यारी गुड़ियाँ यहाँ प्रदर्शित हैं।

बी एम बिड़ला तारामंडल ,

(समयः 12 बजे से सात बजे तक)- अपने आधुनिक कम्पयूटरयुक्त प्रक्षेपण व्यवस्था के साथ इस ताराघर में श्रव्य व दृश्य शिक्षा व मनोरंजनों के साधनों की अनोखी सुविधा उपलब्घ है। विद्यालयों के दलों के लिये रियायत उपलब्ध है। प्रत्येक महीने के आखिरी बुघवार को यह बंद रहता है।

गलता तीर्थ 

एक प्राचीन तार्थस्थल, निचली पहाड़ियों के बीच बगीचों से परे स्थित। मंदिर, मंडप और पवित्र कुंडो के साथ हरियाली युक्त प्राकृतिक दृश्य इसे आनन्ददायक स्थल बना देते हैं। दीवान कृपाराम द्वारा निर्मित उच्चतम चोटी के शिखर पर बना सूर्य देवता का छोटा मंदिर शहर के सारे स्थानों से दिखाई पड़ता है।

चूलगि‍र‍ि जैन मंदिर -

जयपुर-आगरा मार्ग पर बने इस उत्कृष्ट जैन मंदिर की दीवारों पर जयपुर शैली में उन्नीसवीं सदी के अत्यधिक सुंदर चित्र बने हैं

मोती डूंगरी और लक्ष्मी नारायण मंदिर

मोती डूंगरी एक छोटी पहाडी है इस पर एक छोटे महल का न‍िर्माण क‍िया गया है इसके चारों और क‍िले के समान बुर्ज हैं । यहां स्थ‍ित प्राचीन श‍िवालय है जो वर्ष में केवल एक बार श‍िवरात्रि के द‍िन आमजन के ल‍िए पूजा के ल‍िए खोला जाता है । यह क‍िला स्कॉटलैण्ड के किले की तरह निर्मित है। इसकी तलहटी में जयपुर का सर्वपूजनीय गणेश मंदिर और अद्भुत लक्ष्मी नारायण मंदिर भी जयपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं ।

स्टेच्यु सर्किल - चक्कर के मध्य सवाई जयसिंह का स्टैच्यू बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से बना हुआ है। इसे जयपुर के संस्थापक को श्रद्धांजलि देने के लिए नई क्षेत्रीय योजना के अंतर्गत बनाया गया है। इस में स्थापित सवाई जयसिंह की भव्यमूर्ति के मूर्तिशिल्पी स्व.महेंद्र कुमार दास हैं।

अन्य स्थल

आमेर मार्ग पर रामगढ़ मार्ग के चौराहे के पास रानियों की याद में बनी आकर्षक महारानी की कई छतरियां है। मानसागर झील के मध्य, सवाई माधोसिंह प्रथम द्वारा निर्मित जल महल, एक मनोहारी स्थल है। परिष्कृत मंदिरों व बगीचों वाले कनक वृंदावन भवन की पुरातन पूर्णता को विगत समय में पुनर्निर्मित किया गया है। इस सड़क के पश्चिम में गैटोर में शाही शमशान घाट है जिसमें जयपुर के सवाई ईश्वरी सिंह के सिवाय समस्त शासकों के भव्य स्मारक हैं। बारीक नक्काशी व लालित्यपूर्ण आकार से युक्त सवाई जयसिंह द्वितीय की बहुत ही प्रभावशाली छतरी है। प्राकृतिक पृष्ठभूमि से युक्त बगीचे आगरा मार्ग पर दीवारों से घिरे शहर के दक्षिण पूर्वी कोने पर घाटी में फैले हुए हैं।

गेटोर 

सिसोदिया रानी के बाग में फव्वारों, पानी की नहरों, व चित्रित मंडपों के साथ पंक्तिबद्ध बहुस्तरीय बगीचे हैं व बैठकों के कमरे हैं। अन्य बगीचों में, विद्याधर का बाग बहुत ही अच्छे ढ़ग से संरक्षित बाग है, इसमें घने वृक्ष, बहता पानी व खुले मंडप हैं। इसे शहर के नियोजक विद्याधर ने निर्मित किया था।

आमेर का किला

 यह कभी सात सदी तक ढूंडार के पुराने राज्य के कच्छवाहा शासकों की राजधानी थी।

आमेर महल


आमेर और शीला माता मंदिर - लगभग दो शताब्दी पूर्व राजा मान सिंह, मिर्जा राजा जयसिंह और सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित महलों, मंडपों, बगीचों और मंदिरों का एक आकर्षक भवन है। मावठा झील के शान्त पानी से यह महल सीधा उभरता है और वहाँ सुगम रास्ते द्वारा पहुंचा जा सकता है। सिंह पोल और जलेब चौक तक अक्सर पर्यटक हाथी पर सवार होकर जाते हैं। चौक के सिरे से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उठती हैं, एक शिला माता के मंदिर की ओर जाती है और दूसरी महल के भवन की ओर। यहां स्थापित करने के लिए राजा मानसिंह द्वारा संरक्षक देवी की मूर्ति, जिसकी पूजा हजारों श्रद्धालु करते है, पूर्वी बंगाल (जो अब बंगला देश है) के जेसोर से यहां लाई गई थी। एक दर्शनीय स्तंभों वाला हॉल दीवान-ए-आम और एक दो मंजिला चित्रित प्रवेशद्वार, गणेश पोल आगे के प्रांगण में है। गलियारे के पीछे चारबाग की तरह का एक रमणीय छोटा बगीचा है, जिसकी दाई तरफ सुख निवास है और बाई तरफ जसमंदिर। इसमें मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित है, बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और गचकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दीवारें। मावठा झील के मध्य में सही अनुपातित मोहन बाड़ी या केसर क्यारी और उसके पूर्वी किनारे पर दिलराम बाग ऊपर बने महलों का मनोहर दृश्य दिखाते है।

पुराना शहर - कभी राजाओं, हस्तशिल्पों व आम जनता का आवास आमेर का पुराना क़स्बा अब खंडहर बन गया है। आकर्षक ढंग से नक्काशीदार व सुनियोजित जगत शिरोमणि मंदिर, मीराबाई से जुड़ा एक कृष्ण मंदिर, नरसिंहजी का पुराना मंदिर व अच्छे ढंग से बना सीढ़ियों वाला कुआँ, पन्ना मियां का कुण्ड समृद्ध अतीत के अवशेष हैं।

जयगढ़ किला

मध्ययुगीन भारत के कुछ सैनिक इमारतों में से एक। महलों, बगीचों, टांकियों, अन्य भन्डार, शस्त्रागार, एक सुनोयोजित तोप ढलाई-घर, अनेक मंदिर, एक लंबा बुर्ज और एक विशालकाय तोप - जयबाण जो देश की सबसे बड़ी तोपों में से एक है। जयगढ़ के फैले हुए परकोटे, बुर्ज और प्रवेश द्वार पश्चिमी द्वार क्षितिज को छूते हैं। नाहरगढः जयगढ की पहाड़ियों के पीछे स्थित गुलाबी शहर का पहरेदार है - नाहरगढ़ किला। यद्यपि इसका बहुत कुछ हिस्सा ध्वस्त हो गया है, फिर भी सवाई मान सिंह द्वितीय व सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा बनाई मनोहर इमारतें किले की रौनक बढाती हैं सांगानेर  - (१२ किलोमीटर) - यह टोंक जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। इसके ध्वस्त महलों के अतिरिक्त, सांगानेर के उत्कृष्ट नक्काशीदार जैन मंदिर है। दो त्रिपोलिया (तीन मुख्य द्वार) के अवशेषो द्वारा नगर में प्रवेश किया जाता है।

शिल्प उद्योग के लिए शहर महत्वपूर्ण केन्द्र है और ठप्पे व जालीदार छपाई की इकाइयों द्वारा हाथ से बने बढिया कपड़े यहां बनते है। यह कपड़ा देश व विदेश में प्रसिद्ध है।

गोनेर  - दूरी -(17 किलोमीटर) जयपुर की छोटी काशी के उपनाम से विख्यात कस्बा। जयपुर एवं दौसा जिले के ग्रामीण अंचल के आराध्य श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर का भव्य एवं प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक प्राचीन किला, बावड़ियाँ एवं जगन्नाथ सागर तालाब स्थित है। राज्य स्तरीय राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान तथा जिला स्तरीय जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान स्थित है।

बगरु - (34 किलोमीटर) - अजमेर मार्ग पर, पुराना किला, अभी भी अच्छी अवस्था में है। यह अपने हाथ की छपाई के हथकरघा उद्योग के लिए उल्लेखनीय है, जहां सरल तकनीको का प्रयोग होता है। इस हथकरघाओं के डिजाइन कम जटिल व मटियाले रंगो के होते है।

रामगढ़ झील  - (32 किलोमीटर उत्तर - पूर्व) - पेड़ो से आच्छादित पहाड़ियो के बीच एक ऊंचा बांध बांध कर एक विशाल कृत्रिम झील की निर्माण किया गया है। यद्यपि जमवा माता का मंदिर व पुराने किले के खंडहर इसके पुरावशेष है। विशेषकर बारिश के मौसम में इसके आकर्षक प्राकृतिक दृश्य इसको एक बेहतर पिकनिक स्थल बना देते है।

सामोद - (40 किलोमीटर उत्तर - पूर्व) - सुन्दर सामोद महल का पुनर्निमाण किया गया है तथा यह राजपूत हवेली वास्तुकला का बेहतर नमूना है व पर्यटन लिए उत्तम स्थल।

विराट नगर - (शाहपुरा - अलवर मार्ग 86 किलोमीटर दूर) - खुदाई करने पर निकले एक वृत्ताकार बुद्ध मंदिर के अवशेषों से युक्त एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है जो राजस्थान का असाधारण व भारत का आरंभिक प्रसिद्ध मंदिर है। बैराठ में मौर्य, मुगल व राजपूत समय के स्मृतिचिन्ह भी हैं। अकबर द्वारा निर्मित एक खान (?), एक रमणीय मुगल बगीचा और जहांगीर द्वारा निर्मित चित्रित छतरियों व दीवारों से युक्त असाधारण इमारत अन्य आकर्षण हैं। 

सांभर झील 

(पश्चिम से 14 किलोमीटर) - नमक की विशाल झील, पवित्र देवयानी कुंड, महल और पास ही स्थित नालियासार  प्रसिद्ध है।

जयसिंहपुरा खोर - (अजमेर मार्ग से 12 किलोमीटर) - मीणा कबीले के इस आवास में एक दुर्गम किला, एक जैन मंदिर और हरे भरे वृक्षों के बीच एक बावड़ी है।

माधोगढ़ - तुंगा (बस्सी लालसोट आगरा मार्ग से 40 किलोमीटर) - जयपुर व मराठा सेना के बीच हुए एतिहासिक युग का तुंगा गवाह है। सुंदर आम के बागों के बीच यह किला बसा है।

चाकसू  से 2 किमी पूर्व में शीतला माता का मंदिर है जिसमे प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण प्रतिपदा अष्टमी को यहां मेला भरता है जिसमे लाखो की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं।


जयपुर में आतंकवाद - १३ मई २००८ को जयपुर में श्रृंखलाबद्ध सात बम विस्फोट  किए गए। विस्फोट १२ मिनट की अवधि के भीतर जयपुर के विभिन्न स्थानों पर हुए‍। आठवाँ बम निष्क्रिय पाया गया। घटना में ८० से अधिक लोगों कि मृत्यु व डेढ़ सौ से अधिक घायल हुए। जयपुर (सुइसी / डीएपीपीएएआर /) [2] [3] [4] उत्तरी भारत में राजस्थान और राजस्थान का सबसे बड़ा शहर है। यह 18 नवंबर 1726 को महाराजा जय सिंह द्वितीय, आमेर के शासक द्वारा स्थापित किया गया था जिसके बाद शहर का नाम लिया गया था। [5] 2011 तक, शहर की आबादी 3.1 मिलियन है, जिससे देश में यह दसवां सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन गया है। जयपुर को भी भारत के गुलाबी शहर के रूप में जाना जाता है। [6] जयपुर भारतीय राजधानी नई दिल्ली से 260 किलोमीटर (162 मील) स्थित है। जयपुर आगरा (240 किमी, 14 9 मील) के साथ पश्चिमी स्वर्ण त्रिभुज पर्यटन सर्किट का एक हिस्सा है। [7] जयपुर भारत में लोकप्रिय पर्यटन स्थल है और राजस्थान के अन्य पर्यटन स्थलों जैसे जोधपुर (348 किमी, 216 मील), जैसलमेर (571 किमी, 355 मील), उदयपुर (421 किमी, 262 मील) के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। और माउंट आबू (520 किमी, 323 मील)

विषय वस्तु [छिपाएं] 1 इतिहास 2 जलवायु 3 वास्तुकला 4 जनसांख्यिकी 5 प्रशासन और राजनीति 6 अर्थव्यवस्था 7 मीडिया 8 संस्कृति 8.1 भोजन 8.2 बोली 9 रुचि के स्थान 10 खेल 11 शिक्षा 12 परिवहन 12.1 रोड 12.2 रेल 12.3 एयर 13 संचार 14 आगे पढ़ने 15 भी देखें 16 सन्दर्भ 17 बाहरी लिंक इतिहास [संपादित करें] मुख्य लेख: जयपुर का इतिहास

जय सिंह द्वितीय, जयपुर के संस्थापक जयसिंह शहर की स्थापना जयसिंह द्वितीय, आमेर के राजा ने की थी, जो 1688 से 1758 तक शासन कर रही थी। उन्होंने अपनी राजधानी जयपुर से 11 किलोमीटर (7 मील), आमेर से बढ़ती जनसंख्या को समायोजित करने और उनकी कमी को कम करने की योजना बनाई। पानी। [5] जय सिंह ने जयपुर के लेआउट की योजना बनाते समय आर्किटेक्चर और आर्किटेक्ट्स पर कई किताबों से परामर्श किया। विद्याधर भट्टाचार्य के स्थापत्य मार्गदर्शन के तहत, जयपुर वास्तुशास्त्र और शिल्पा शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर योजना बनाई गई थी। [8] शहर का निर्माण 1726 में शुरू हुआ और प्रमुख सड़कों, कार्यालयों और महलों को पूरा करने में चार साल लगे। शहर को 9 ब्लॉकों में विभाजित किया गया था, जिनमें से दो में राज्य की इमारतों और महलों में निहित है, शेष सात लोगों को जनता के लिए आवंटित किया गया था। विशाल गगनचुंबी इमारतों का निर्माण, सात गढ़वाले गेटों से छेड़ा गया। [5]

जयपुर भारत के सबसे अधिक सामाजिक समृद्ध विरासत शहरी इलाकों में एक असाधारण है। वर्ष 1727 में स्थापित, शहर का नाम महाराजा जय सिंह द्वितीय है, जो इस शहर के प्राथमिक आयोजक थे। वह एक कच्छवाहा राजपूत था और 16 99 और 1744 के आसपास के क्षेत्र में इस क्षेत्र पर शासन किया था।

सवाई राम सिंह के शासन के दौरान, शहर को 1876 में राजकुमार ऑफ वेल्स, बाद में एडवर्ड VII, का स्वागत करने के लिए गुलाबी चित्रित किया गया था। [8] कई रास्ते गुलाबी रंग में पेंट किए गए, जयपुर को एक विशिष्ट रूप दिया गया और गुलाबी शहर का नाम दिया गया। [10] 1 9वीं सदी में, शहर तेजी से बढ़ गया और 1 9 00 तक इसकी आबादी 160,000 थी। विस्तृत बुलेवार्ड्स को पक्का किया गया था और इसके मुख्य उद्योग धातुओं और संगमरमर का काम थे, 1868 में स्थापित कला विद्यालय द्वारा विकसित किया गया था। इस शहर में तीन कॉलेज थे, जिनमें संस्कृत कॉलेज (1865) और लड़कियों के स्कूल (1867) के दौरान खोला गया था 

 

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